ये देशप्रेम नहीं .... गद्दी का मोह है!
ये देशप्रेम नहीं .... गद्दी का मोह है! कांग्रेस पतन नहीं..... नेताओं की असलियत का समय है।

जी हां आजादी से अब तक एक बात आप ने समझी होगी कि जन समूह जिसके साथ हैं,वह जनता का बेताश बादशाह हैं।
किसी भी दल का नेतृत्व अकेले नहीं होता बल्कि उस व्यक्तित्व की पहचान से होता है जो केवल किसी एक के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण जनसमूह के लिए आम से खास बन जाता है।
कांग्रेस पार्टी के इतिहास पर हम बातचीत ना करेंगे क्योंकि वह तो आप सभी बखूबी जानते हैं।
लेकिन आजादी के 70 सालों बाद भारत में जो आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है ऐसे में कांग्रेस की उन भूमिकाओं को याद करते हुए वर्तमान समय में कांग्रेस के पदों को त्यागने के बाद अनेक प्रकार की भ्रांतियां और सताना मिलने के बाद अनर्गल बयानबाजी देने का यह दौर उन नेताओं की हकीकत बयां करता है जो घर में रहकर अपनों की पीठ में खंजर घोपा करते हैं।
बेशक राजनीति विचारधाराओं का खेल है लेकिन किसी एक विचारधारा का पतन होना भी उसके अपने लोगों का ही कारण है।
जब तक कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व चट्टान की तरह अडिग खड़ा हुआ था तब तक कांग्रेस के कई दिग्गजों ने मरते दम तक इसमें अपनी भूमिका निभाने की कसम निभाई।
आज का दौर देखिए ज्योतिरादित्य सिंधिया गुलाम नबी आजाद ऐसे कई नाम है जो कांग्रेस का दामन चीर कर अपनी नई सत्ता की पारी की कुर्सी को साफ करने में लगे हैं।
राजनीति के इस बड़े बदलाव में यह सबक भारत की जनता को लेना चाहिए जब 70 सालों तक आप एक विशाल जनसमूह को नेतृत्व करने वाली लोगों के मन में बसने वाली कांग्रेस दल को आज कहीं का नहीं छोड़ रहे संघर्ष के समय न केवल सत्ता प्रलोभन के लिए बल्कि अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए मुंह मोड़ कर निकल रहे हैं।
राहुल गांधी सोनिया गांधी एवं गांधी परिवार सहित संपूर्ण कांग्रेस को जिस तरीके से एक के बाद एक बदनाम करने की कोशिश की जा रही है उससे न केवल कांग्रेस की आंतरिक फूट बल्कि आपकी आंतरिक स्वार्थ लिप्सा का भी सत्य उजागर हो रहा है जो एक पार्टी को आज तक विश्वास के घेरे में खड़े रखते हुए उसके सगे नहीं हुए वे सत्ता प्राप्ति के लिए या विचारों से असमर्थ होते हुए किसी अन्य रास्ते पर चलने की मुहिम शुरू करते हैं तो जिस प्रकार आज उनके शब्द और भाषा बदली है वह समय दूर नहीं जब देश के साथ फिर गद्दारी कर सकते हो।
आजादी के समय से 50 वर्षों तक का गर्म समय देखे ऐसे ऐसे दिग्गजों ने भारत में राज किया है साथ ही कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं की भूमिका निभाई है जिससे हमेशा उन राजनीतिक दलों को मजबूती प्रदान हुई और वह निकले कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा बने हैं जिस प्रकार नीव मजबूत होगी तो उसकी छत तक कोई कमजोर ही नहीं है उसी प्रकार भारत के भविष्य में राजनीतिक स्तर को अलग रूप में देखा जाएगा जब आज के दौर के नेताओं की चाटुकारिता और बदलते दौर के साथ बदलती भाषा का स्वरूप देखने को मिलेगा।
अंततः यही कहना उचित होगा कि जो इतने वर्षों तक एक पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में रहते हुए भी संतुष्ट ना हो पाए गए किसी अन्य रास्ते पर जाकर भी देश हित में कभी कार्य नहीं करेंगे।
जय हिंद
पूजा बाथरा
मोटिवेश्नल लेखिका राष्ट्रीय पत्रकार नई दिल्ली
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