सवाल एक , समाधान अनेक।।।।
सवाल एक , समाधान अनेक।।।।

ये केवल एक मित्र का सवाल नहीं है।
न इनका कसूर हैं ये सवाल पूछना पड़े।
दुर्भाग्य यह है कि हमारे हिंदूवादी संगठन ओर संत महंत भारत वर्ष के निचले से निचले हिस्से को आगे नहीं आने देते।
दूसरा दुर्भाग्य यह है कि जो भगवान् को मानते नहीं वो भगवान् की वास्तविकता को जानेंगे कैसे???
जब तक आप कुएं के पास पहुंचेंगे नहीं पानी कैसे मिलेगा???
आपकी प्यास कैसे मिटेगी???
आपने किताबी शिक्षा तो ली हैं।मगर उद्देश्य केवल शिक्षा लेकर नौकर बनकर घर चलाने तक सीमित हैं।
आपको उस ज्ञान से भी शिक्षित होने की ज़रूरत है जो वास्तविक हैं कुछ ही लोगों के पास है, सब को प्राप्त नहीं है।
ये मैं 101% दावे से हमेशा कहती हूं कि विडम्बना मेरे सनातन धर्म की नहीं है विडम्बना इस बात की है कि सत्य को फैलने ही नहीं दिया जाता।
मगर जितना सत्य के प्रकाश को रोकने की कोशिश होगी यह उतना प्रभावशाली होगा।
मैं आह्वान करती हूं उन साथियों का जो हिंदुत्व, सनातन धर्म, मनुवाद,ऐसे चीजों से खुद को पीड़ित समझते हैं।
वे इनका गहन अध्ययन करें।
खुद निष्कर्ष निकालें।
खुद अच्छे बुरे का आभास करें।
आपको किसी ने नहीं बांटा आप इसे जानना ही नहीं चाहते।
ज़रूरत है आप इसे जानिए।
मित्र Prince Raj के सवाल से हजारों पढ़ने वाले लोगों को भी इसका जवाब मिलेगा।
सवाल एक , समाधान अनेक।
- आप हर बात के लिए ब्राह्मणों को दोषी क्यों ठहराते हैं।
आप दिन रात फिल्मी गीतों में मद मस्त मगन रहते हैं।
क्योंकि यह आपकी रुचि है।
आप हूबहू अभिनेता की तरह एक्टिंग करते हैं।
वीडीओ बनाते हैं।
मगर पब्लिक सेलेब्रिटी नहीं बने, रुचि तो बरकरार है ना।
फिर आप उस धर्म का ज्ञान जाने बिना केवल ब्राम्हणों को दोषी क्यों कहते हैं।
ब्राह्मण तो एक माध्यम है। आपको दिशा देने के लिए।
रही बात भगवान् की उन्होंने प्रत्येक मनुष्य में सारे गुण दिए हैं।
जिन्हें आज वर्ण कहा जाता हैं।
एक मनुष्य में ब्राह्मण भी है, क्षत्रिय भी, वैश्य, दलित भी।
यह मत सोचिए कि ब्राह्मण होकर वे किसी पाप पुण्य के भागी नहीं होते होंगे।
ओर ऐसा भी नहीं है कि उनमें सभी महान हैं।
वहां भी शूद्र पूर्वक व्यवहार करने वाले हैं।
तो यह चारों चीजे मनुष्य के आचरण प्रकरण की है।
जिन्हें बाद में जाति बना दिया गया।
जाति गत भेदभाव हमारे अपनों ने शुरू किया था यह सत्य हैं।
मगर उससे बड़ा सत्य यह है कि आज आप चारों वर्णों ने अपनी वास्तविकता खो दी है।
उससे बड़ा सच यह है कि अम्बेडकर का कानून दोषी नहीं है, अंग्रेजों का कानून है जिसने आपको जाति में बांटा है।
ब्राह्मण परशुराम जी भगवान् के शब्दों का अनुसरण करने लगे तो, सारे क्षत्रिय वैश्य ओर दलित का मुद्दा ख़तम।
आज़ादी के समय से अब तक ।
सृष्टि के आरंभ से अंत ओर अनंत तक केवल 33 कोटि देवताओं का अर्थ करोड़ नहीं है।
कोटि एक प्रकार है। करोड़ नहीं।
जिसमें आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इंद्र और प्रजापति शामिल हैं।
इस प्रकार 33 कोटि होता है।
जब तक आप सभी किसी ज्ञान को प्राप्त करने की जिज्ञासा नहीं रखेंगे उसकी सच्चाई तक नहीं पहुंचेंगे।
इसलिए अध्ययन कीजिए।
खुद सत्य की तलाश कीजिए, सारे सवाल का जवाब ओर साक्ष्य आप को मिलेगा।
मेरा 101% वादा हैं।????
पूजा बाथरा
मोटिवेश्नल लेखिका राष्ट्रीय पत्रकार नई दिल्ली
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