सत्य विजय रथ ...

सत्य विजय रथ ...

दुनिया वह हैं साहब जिसकी कथनी करनी में बहुत फर्क हैं।
किसान और जवान देश का भगवान् हैं, वो 24 घंटे आपकी सेवा में लगा होता हैं
मगर उसकी लाश , अंतिम विदाई पर आप रोते हैं।
उससे पहले उसकी याद कभी नहीं आती
फोटो पर मालाए, बिन मुहूर्त हैं चढ़ जाती

उसी प्रकार
जिन शेर ओ शायरी में दिन रात जुल्फों का जिक्र करते हैं आप
सुबह शाम के भोजन निकले बाल
तो मां ,बीवी, बहन , बेटियां जख्मों को सह जाती


गोरों से लड़ाई लड़ी भारत ने, ऐसे ही कोई तरक्की नहीं मिल जाती
कई अपनों ने गुलामी की उनकी, तब जाकर भारत मां लूटी थीं जाती
न तुम कल एक हुए न आज
ये जाति कैसी हैं जो कल गई न आज
जिंदगी घूम फिर कर आज वहीं खड़ी है भारत की
पूछिए खुद से,नेताओं से
ये गरीबी, बेबसी, लाचारी क्यों नहीं जाती

हे हकीकत,आज सब अपना कर्म भूल गए
वाणी व्यवहार में ब्राह्मण नम्रता खो गए
युद्ध भूमि तो दूर घर घर में क्षत्रिय दायित्व से मुकर गए
वैश्य बने देश समाज के व्यापारी
हर चीज के दाम बढ़ गए
शूद्र से पूछिए जो केवल संविधान की आड़ में कुछ जिंदगी जी गए
कुछ आज भी जहर पी रहें


हे विश्वाश अटल मुझे उस भगवान् के अस्तित्व पर
जो भोलेनाथ से महाकाल हो गए
जिनके मात पिता बन्दी रहे कारागार
वो मधुसूदन भी सब कुछ सह गए
जब उन्होंने बिना शस्त्र उठाए दी जीत
वो गोविंद प्राण वल्लभ कान्हा से विराट स्वरूप दे गए।
मुरली मीठी बजाकर प्रेम रस,तो गीता ज्ञान भंडार दे गए।

जय श्री कृष्णा
जय हिंद


पूजा बाथरा
मोटिवेश्नल लेखिका राष्ट्रीय पत्रकार नई दिल्ली

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