पुरुषों के लिए,उनके माता पिता ,

पुरुषों के लिए,उनके माता पिता , परिजन,घर की जिम्मेदारी , छोटे भाई बहन आदि के लिए भी कोई इंसाफ होगा या नहीं ????
एक व्यक्ति की कमर तोड़ने जैसे नियम है यह सब, क्योंकि आज के दौर में रिश्तों का मजाक बना हुआ है।
60% महिला आरक्षण में वह अधिकतम अपने अधिकारों का दुरुपयोग करती हैं।
ऐसे में सज्जन ओर, नेज परिवार बेबस ओर मरणासन्न अवस्था में चले जाते हैं।
उस वक्त कोर्ट कोई न्याय नहीं कर सकता पीड़ित पुरुष के साथ।
इस संदर्भ में सामाजिक सुधार की जरूरत है।
हजारों केस न जाने कितने परिवार उजाड़ कर अदालतों में पेंडिंग पड़े हैं।
घर को बर्बाद करने में सबसे बड़ा हाथ महिला पक्ष के कुछ वकील का भी होता है ।
जो कभी नहीं चाहता कि पति-पत्नी के बीच में समझौता हो जाए ।
अगर समझौता हो गया तो उसका रोजी-रोटी कैसे चलेगा।
इंसाफ नहीं, ना इंसाफी मिलती हैं।
पूजा बाथरा
मोटिवेश्नल लेखिका राष्ट्रीय पत्रकार नई दिल्ली
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