मित्र एवम् सदैव मेरे शुभ चिंतक शर्मा जी के प्रश्न का जवाब

मित्र एवम् सदैव मेरे शुभ चिंतक शर्मा जी के प्रश्न का जवाब

मित्र एवम् सदैव मेरे शुभ चिंतक शर्मा जी के प्रश्न का जवाब

मित्र एवम् सदैव मेरे शुभ चिंतक शर्मा जी के प्रश्न का जवाब !
इस पर ज़रूर बताइए क्या भगवान् अवतरित होंगे तभी आप यानी लोगों को लगता हैं कि भगवान् हैं,या होंगे???

भगवान् तो आरंभ से अंत तक हैं, और वे तो अनन्त हैं।
जिनका जन्म या मरण कोई नहीं ढूंढ सकता।
मगर यह सत्य हैं कि मनुष्य को सिखाने, अपने कर्म का बोध कराने, असत्य को मार्ग पर लाने, और अधर्म का नाश करने के लिए उन्हें मानव रूप में आना ही पड़ता हैं।

अब कई बुध्दि जिवी कहेंगे कि आना पड़ता हैं और यहीं कण कण में मौजूद भी है तो यह दो बातें हुई??

बेशक दो बातें हुई मगर जवाब हमेशा एक ही होगा वह हैं।
अगर भूतकाल में व्यतीत वृतांत से मनुष्य समझ जाता तो वे मानव रूप नहीं लेते, वर्तमान में भी समझ जाता तो अगले भविष्य की तैयारी नहीं होती।
और यह भी सत्य हैं कि ये मनुष्य जाति भविष्य में भी उसके रूप को नहीं जान पाएगा,नहीं देख पाएगा इसलिए उसे फिर से नए रूप में आना ही होगा।

आप कभी सोचिए।
इस धरती पर मनुष्य के अतिरिक्त कितनी प्रजातियां हैं ।
अनेक
सबको वहीं संचालित कर रहा हैं।
वह उन रूपों में भी विद्यमान हैं।
किन्तु कभी उन प्रजातियों में से किसी ने अधर्म किया??
अन्याय किया??
या ऐसा कोई काम जिससे भगवान् को उनके लिए भी अवतरित होना पड़े।
नहीं
सब कुछ मनुष्य ही कर रहा हैं।
और मनुष्य जाति से ये सब प्रजातियां विभिन्न रूपों में जुड़ी हैं।
इन सबकी रक्षार्थ भी भगवान् को अवतरित होना पड़ता हैं।
यहीं कटु सत्य हैं।
लोगों को भगवान् दिखाई क्यों नहीं देते??
कारण है मोह माया,बन्धन, महत्वकांक्षा, आगे बढ़ने की होड़ आदि आदि।
तो सुनिए ऐसा कौन व्यक्ति हैं जिसे बिना शीशे के उसका प्रतिबिंब दिखाई दे सकता हैं??
या परछाई वह देख सकता हो??
नहीं कोई नहीं।
किन्तु वह ये सारे बंधनों में बंधकर इसी प्रकार उस परम सत्य को जानते हुए भी नहीं देख सकता कि वह जो कर रहा हैं कल्याण का रास्ता नहीं।
मुक्ति का रास्ता नहीं।
उसके पापों का रास्ता है।
जिसे भगवान् का भय भी है,अपने कर्म फल का ज्ञान भी है,अपनी योग्यता के विरुद्ध अनर्थ करने का आभास भी है।
फिर भी वह सब कुछ करता हैं।
क्योंकि वह सब कुछ पाने,ओर करने में लालायित हैं।
मगर भगवान् को नहीं देख सकता।
और यदि देखना चाहता भी हो तो सब से विरक्त हो जाएगा।
और वह विरक्त हो गया तो जीविका कैसे चलाएगा??
परिवार कैसे पालेगा??
सबकी इच्छाएं कैसे पूरी करेगा??
इसलिए सत्य जानते हुए भी आंख बन्द करके चलता हुआ, अनेक बार जन्म लेता हैं ओर फिर यूं भटकता रहता हैं।

इसलिए लोगों को भगवान् के दर्शन नहीं हो सकते।
लेकिन मैं फिर भी कहूंगी भगवान् के दर्शन इन जिम्मेदारियों में रहकर भी हो सकते हैं।
लेकिन मार्ग बदलना होगा।
खुद को रोजाना प्रशिक्षित करना होगा।
खुद पर नियंत्रण और विश्वास करना होगा।
भगवान् के दर्शन अवश्य होंगे।
और अपने भीतर ही होंगे।


पूजा बाथरा
मोटिवेश्नल लेखिका, राष्ट्रीय पत्रकार,नई दिल्ली

जय श्री कृष्णा
जय हिंद

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