मेरी वसीयत

क्या लिखूं स्त्री का अपना क्या होता है......
जन्म से पिता के नाम....
शादी के बाद पति के नाम....
बच्चे पिता के नाम.....
वैसे मेरे नाम पर बहुत कुछ किया जाता है..
टैक्स बचाने के लिए.....
जिसपर मेरा कोई अधिकार नहीं होता....
मुझे देवी कि तरह सजाया जाता है....
गहनों तौला जाता है समाज में प्रतिष्ठा के लिए..
शयनेसु रम्भा बनाया जाता है.....
पती को पूजने के लिए....
वैसे पती के जूतों में मेरी जगह होती है.....
हाँ अगर मेरा अपना कुछ है तो.....
मेरे संस्कार मेरा संयम मेरा आत्म विश्वास मेरी दृढता निश्छलता निडरता.....
जिसे समय समय पर इस्तेमाल किया जाता है.....
चंद को भी पतली रेखा से गुज़रना पड़ता है...
सम्पूर्ण होने के लिए..
मेरा गुनाह था.....
स्त्री के अधिकार से परचित होना.....
हाँ ये गुनाह मैंने किया......
मैंने क़ानून के दरवाज़े खटखटाए...
कोर्ट की दीवारें गूंगी बहरी थीं......
ऊपर भी एक अदालत है जिसके फैसले अटल हैं.....
जब हम ना इंसाफ़ी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं....
सबसे पहले हमारा शरीर हमसे लड़ता है.. .
उससे जितना है.....
फिर समाज के ठेकेदार हमें टुकराते हैं......
वहाँ अपनी जगह बनाना है.....
हमारा समाज पुरुष प्रधान है....
स्त्रियां चाहकर भी हमारा साथ नहीं दे सकती उन्हें विश्वास दिलाना है.....
रहा क़ानून जहां एक स्त्री को खड़ा किया गया है....
अंधी गूंगी बहरी बनकर...
हाथ में तराज़ू थमाकार...
जो नहीं जानती क्या तौल रही है.....
रौशनी की मशाल जलाकर रखना....
कल तो सवेरा आएगा...
जब तक मैं ज़िंदा हूं....
ये संघर्ष जारी रहेगा.......
मेरी ये वसीयत....
मेरी उन बहनों को समर्पित है....
जो संघर्ष कर रही हैं.....
जो सिर्फ नसीहत है....
कल मैं रहूं ना रहूं.......
मेरी बहनों को....
इस सवाल का जवाब....
परिवार से सनाज से...
क़ानून से लेना है...
मेरा अपना क्या है??????????
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