कैसी है ये आज़ादी...

कैसी है ये आज़ादी...

15 अगस्त आने वाला है उससे पहले अपनी व्यक्तिगत भावना के रूप में यह कविता मैंने लिखी है जिसका एक एक शब्द कड़वी सच्चाई है यद्यपि किसी की भावनाओं को ठेस लगे तो क्षमा कीजिएगा।

कैसी है ये आज़ादी
सिर्फ़ नाम की आज़ादी
कागज़ों में हैं गुलामी आज भी
नाज़ की नहीं,अफसोस की है आजादी

सच बोलने वाले देशद्रोही
गुलामी करने वाले देशभक्त
ये वतन का दुर्भाग्य है यारों
हिंदू मुसलमान के नाम ख़त्म आजादी

किसानों की मौत,अत्याचार
जवानों की शहादत पर हाहाकार
लेकिन अफसोस
कोई नहीं पूछता इनका हाल
ये बेबसी की लाचारी
कहां हैं आजादी,कैसी है आज़ादी


राजनेता,अभिनेता,कलमकार
अधिकारी,युवा,जवान,सब दाग़दार
काम निकले तो जय श्री राम
वन्देमातरम्
न बोलने वाले को देशद्रोही क़रार
यह नहीं आज़ादी,बेकार है यह नाम


बन्द करो दिखावा,तुम आज़ाद
मैं आज़ाद,हम सब आज़ाद
नहीं मेरे यार
बेड़ियों में बन्धा हैं भारत आज
न कल आज़ाद,न हुआ आज आज़ाद

उठाओ कलम अपनी हे साहित्य क़ार
करो देश के वीरों का आह्वाहन 
लड़ो लड़ाई मां भारती के लाल
करो देश को आज़ाद,करो देश को आज़ाद।

पूजा बाथरा(कवियत्री/राष्ट्रीय पत्रकार)
स्वरचित काव्य पाठ, प्रकाशित और प्रसारित
नई दिल्ली

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