कलमकार

कलमकार

कलमकार

कई रातें जागा हूं मैं
न पेट पालने के लिए
न मन संभालने के लिए
जो किताबों के साथ रात तक है जागते
जो सड़को पर रात भर बिताते
कुछ उनके वास्ते
कुछ दोस्तों के वास्ते
उम्मीद मुझे दी है आखिर
कलम का सिपाही बनाया हैं
मेरी डिग्री ने नहीं यारों
हालातों से निकलकर,
आवाज बनकर आया हूं मैं
सभी पत्रकार साथियों को समर्पित जो देश ओर जनता की सेवा में बिना किसी तनख्वाह, पेंशन, सुरक्षा,सहयोग,के 24*7 कार्यरत रहते हैं।????

पूजा बाथरा
मोटिवेश्नल लेखिका राष्ट्रीय पत्रकार नई दिल्ली

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