जिंदगी यात्रा ... सुख ओर दु:ख!

जीने के लिए हसना ज़रूरी हैं।
वरना आपका मायूस चेहरा देखकर, ज़माना हसने लगता हैं।
आप गरीब हैं, अमीर हैं
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
फर्क तब पड़ता हैं जब आपको
अमीर गरीब बना दिया जाता हैं
आप तो खाली हाथ, रोते हुए, अकेले,बिना किसी को जाने जन्में थे।
फिर रिश्ते, नाते, गुण अवगुण,ज्ञान, अज्ञान तो आपके गृहण करने का कार्य हैं।
जैसे जैसे कार्य आप करेंगे, वैसे वैसे आप बनेंगे
आपका स्वरूप ,रहन सहन, बोली व्यवहार , आचरण, प्रकरण सब कुछ आपका जीवन सरल या जटिल बनाता है।
महत्वकांक्षाओं से घिरे मनुष्य को, दुःख ओर सुख का सार समझ आता है।
जो इनसे मुक्त हो जाएं
वहीं सुख भोग पाता है
अन्यथा इनमें लिप्त रहने वाला
जन्म जन्मांतर तक दुखों को भोगने बार बार धरती पर पहुंचता है।
आप याद कीजिए क्या आपका था जो खो गया
खो गया तो फिर पाने की आस क्यों???
क्या आपका हैं जिसे पाने के लिए दिन रात दौड़ रहे हैं
कर्म कीजिए मगर, उल्टे सीधे कर्मो का अनुसरण मत कीजिए।
जो चंद पलों के स्वार्थ को सिद्ध करना चाहते हैं,जो पल भर की खुशियां चाहते हैं
वे मूर्ख है
वे इस सुख को देखकर लालायित हो उठते हैं।
ओर दुख का संकट आता देख, भागने लगते हैं,
बताइए आपका मोह आपको कहां ले आया
सब कुछ खो जाएगा
जहां था वहीं रह जाएगा
एक यात्रा में आप आए थे
आपका सफर पूरा होते ही लौट जाओगे
न हाथी से न घोड़े से न मंहगी मंहगी गाड़ियों से
वहां जा पाओगे
खाली हाथ,बन्द मुट्ठी से एक दिन सबको अलविदा कह जाओगे।
जो सुख दुःख का बन्धन समझ गया
समझो जिंदगी जीत गया
जीवन में हार जीत कुछ नहीं
फिर भी वहीं ,केवल वहीं व्यक्ति
शरीर से मुक्त होकर, परमात्मा में विलीन हो गया।
जय श्री कृष्णा
जय हिंद
पूजा बाथरा
मोटिवेश्नल लेखिका राष्ट्रीय पत्रकार नई दिल्ली
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