इंद्र को इंसाफ मिला या जान का सौदा हुआ

जालौर घटना ने न केवल संपूर्ण मीडिया जगत बल्कि मानवीयता को भी शर्मसार कर दिया है , एक व्यक्ति की गलती पर पूरा राजपूत समुदाय प्रताड़ित हो रहा हैं।

इंद्र को इंसाफ मिला या जान का सौदा हुआ

जालौर घटना ने न केवल संपूर्ण मीडिया जगत बल्कि मानवीयता को भी शर्मसार कर दिया है , एक व्यक्ति की गलती पर पूरा राजपूत समुदाय प्रताड़ित हो रहा हैं।
दलितों के हक में हर मीडिया ने आवाज़ उठाई और वे अंत में आकर उस मासूम की मौत का सौदा 50 लाख में तय करते हैं।
इस कृत्य को अंजाम देने के लिए परिजन नहीं बल्कि तथा कथित समाज बन्धु,sc आयोग अध्यक्ष, राजनेता, विधायक शामिल हैं।
उस मां से पूछिए जिसने उसे नौ महीने कोख में रखा ,क्या उसके बच्चे की जान 50 लाख रुपए तक है???????
सरकारी नौकरी ओर मुआवजा क्या उस बच्चे की कमी पूरा करेगा???

यदि आप दलित बन्धु इसे उस बच्चे की मौत का खामियाजा भुगतान समझते हैं तो क्या यह सवाल पूछना गलत होगा , कि भविष्य में फिर कोई घटना होने का आप इंतजार कर रहे हैं??????

आप पता कीजिए नागौर में दलितों के हक में कलेक्ट्रेट का घेराव कर उन्हें न्याय दिलाने में एक क्षत्रिय की अहम भूमिका रही हैं।
जो खबर आपको कहीं नहीं मिलेगी।
फिर दो समुदायों के बीच यह विरोध कौन जगा रहा है????
आपके अपने राज नेता
चाहे वे दलितों के हो या सवर्णों के...!
हाथरस मामले में एक दलित परिवार की बेटी की लाश आधी रात में जलाई जाती हैं साक्ष्य नहीं मिलते उसे इंसाफ नहीं मिलता
क्योंकि सवर्णों का दबदबा है।
और आज
राजस्थान में दलित बच्चे का साथ जो कृत्य हुआ है उसमें अलग अलग तथ्य सामने आ रहे हैं।
ऐसे हालात में आरोपी पर प्रशासन जांच कर रहा हैं।
फिर दलित बन्धु संपूर्ण भारत में राजपूत समुदाय को बदनाम या प्रताड़ित कैसे करने में आतुर हैं।
आप यदि निष्पक्ष बात करते हैं तो ,अपने बच्चे की मौत का मुआवजा 50 लाख कैसे तय किया????
सरकारी नौकरी ओर यह सब चीजें क्या आपकी आत्मीय पीड़ा ठीक कर देगी???
या उस बच्चे को वापस ला सकेगी ???
मतलब जिन भी पत्र पत्रिकाओं, अखबार, टेलीविजन चैनल, मीडिया , सोशल मीडिया ने आपके साथ हुए अन्याय में आवाज उठाई।
आपने उनकी कमर तोड डाली???
शायद इसी सीमा तक यह आंदोलन फिक्स था???

यह कहना गलत नहीं है कि दलितों पर सवर्णों का अत्याचार शुरू से आज तक जारी है, विभिन्न मुद्दे जातिवाद से घिरे रहते हैं।
जिसमें मूछें न रखना
घोड़ी न चढ़ना
सवर्णों के बराबर न दिखना,न बैठना,
आदि
मगर यह आज दलितों ने भी साबित कर दिया है कि वे अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने में पीछे नहीं रहते।
आरक्षण के तहत डॉ अम्बेडकर ने आपको जीने की राह दी है।
न कि किसी के जीवन का सौदा करने की???
आज के युवाओं को अपने इतिहास से सीखने की जरूरत है।
कि गलती एक की हो सकती है मगर सजा के हकदार बेकसूर लोग क्यों हो????

सुराणा मामले में एक पुलिस कांस्टेबल को निलंबित किया गया है।
???????
आखिर क्यों????
दलितों को इस मामले पर जवाब देना चाहिए।


पूजा बाथरा
मोटिवेश्नल लेखिका राष्ट्रीय पत्रकार नई दिल्ली

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