भीड़... नेतृत्व... प्रभाव...आजादी ...या मानसिक आज़ादी ...75 वर्ष भारत की कहानी!

भीड़... नेतृत्व... प्रभाव...आजादी ...या मानसिक आज़ादी ...75 वर्ष भारत की कहानी!

"मेरे बेटे, कभी इतने धार्मिक भी मत होना 
कि ईश्वर को बचाने के लिए इंसान पर उठ जाएं तुम्हारा हाथ, 
न कभी इतने देशभक्त कि घायल को उठाने को झंडा जमीन पर न रख सको।"

यह कवियत्री कादंबरी की पंक्तियां हैं।

आप कहेंगे यह तो महज़ कविताएं हैं लेकिन यह केवल कविता की पंक्तियां नहीं बल्कि हकीकत है कि हमें महापुरुषों से सीखना होगा जो कभी भीड़ का हिस्सा नहीं बने। 
भीड़ ने उनका अनुसरण किया है।

तिरंगा उनके भी दिल में रहा और आज भी लोगों का दिल तिरंगे से जुड़ा है ।
शायद आप समझ सके कि न कल उन्हें साबित करने के लिए कभी किसी प्रमाण की आवश्यकता थी और न आज किसी को प्रमाण की ज़रूरत पड़ेगी?
मगर विडम्बना है कि हर चक्रव्यू का पहला ग्रास राजनीति ने प्रारम्भ किया है।
आप भावनात्मक, देशहित,देश प्रेम में अमृत महोत्सव का हिस्सा जरूर बनें मगर किसी मूर्खता का हिस्सा कभी न बनें। 

अमृत महोत्सव का अर्थ आप समझते हैं कि हम गोरों से सच में आज़ाद हुए हैं, 
नहीं ,आज भी आपके चुने हुए हर जनप्रतिनिधि, नौकरशाह, पढ़े लिखे डिग्री धारी,उच्च कोटि के धनाढ्य लोग सब अंग्रेज़ो के बनाएं कानून का पालन करते हैं।
उनके बनाएं नियमों , षड्यंत्रों का आज तक हर्जाना भुगतते है।
आप शारीरिक रूप से स्वयं को आज़ाद समझते हैं मगर आज तक भारत मानसिक गुलाम है,उस कड़वी सच्चाई का ,जिस का आज जश्न मनाया जा रहा है।

कांग्रेस दल के लोगों को लगता हैं आजादी उनका संघर्ष हैं, बीजेपी आज जो कर रही हैं उनके हिसाब से असली माइनो की आज़ादी आज हैं???????

मतलब कुल मिलाकर जनता आज भी सत्य से परे भटक रही हैं।
एक पक्ष अम्बेडकर के बनाएं कानून का विरोधी इसलिए हैं कि वह प्रत्यक्ष रूप से आपके सामने है,जमीनी हकीकत की आपको जानकारी ही नहीं कि अम्बेडकर के बनाएं कानून से केवल एक समुदाय जिसे पिछड़ा बनाने में भी हमारे अपने लोगों के हाथ है, उन्हें इंसाफ की डगर तक पहुंचाया गया है।
मगर आप सभी भारत वासी उसे आज तक कुंठा बनाकर घूम रहे हैं।
क्योंकि आप को ,आपके ही चुने हुए प्रतिनिधि मंडल ने रोजाना उस सच्चाई से आपको अनभिज्ञ रखा है कि अंग्रेज़ तो चले गए मगर अंग्रेजी हुकूमत का काला चिट्ठा आज भी आपकी कमर तोड़े हुए हैं।


आज के भारतीय मानसिक गुलामी के आदि हो चुके हैं।
वे जश्न मनाएंगे 75 वर्ष के नाम पर जैसा कि पूर्व सरकारें भी आपको यहीं दिखलाती आई।
मगर आपको आंतरिक रूप से आज भी अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़नी पड़ रही हैं।
यह कहना गलत नहीं है।
ऐसे ऐसे सवर्ण बन्धु हैं देश में जिनके अपने भी सगे नहीं है, उन्हें किसी भी प्रकार से सरकारी सहयोग प्राप्त नहीं है।
ग़रीबी, लाचारी का दंश झेल रहे सवर्ण बन्धु भी अपने ही लोगों के प्रताड़ना का शिकार है।
उसी प्रकार दलित समुदाय में भी उनकी पीढ़ियों का हिस्सा ,जो कि गरीब , शोषित वर्ग में आते हैं।
उनके अपने इंसाफ की लड़ाई लड़ने के नाम पर दबा दबा कर बैठे हैं।
यह कैसी आज़ादी है????
दोनों का ही नेतृत्व कर रहे, बड़े बड़े पदवी धारी, डिग्री धारी एक दूसरे से बड़ा होने ओर एक दूसरे को कम करने की दृष्टि से हजारों ,लाखों लोगों के साथ न्याय नहीं मानसिक गुलामी की जड़ों को रोजाना मजबूत करने में लगे हैं।
आज हर घर में राम तो है मगर उसे रावण बनाने में लगे हैं आपके अपने नेतृत्व,आपके प्रतिनिधि।

भारतीय जन की मुट्ठी में एकता अखंडता का परिचय सदियों से मिलता रहा है,यह देख अंग्रेजो को भी खौफ रहा है कि हमें कोई हरा नहीं पाएगा, तभी उन्होंने फूट डालो राज करो की नीति अपनाई,ओर तब से आप हम सदा भीड़ का हिस्सा रहे हैं?

हर घर तिरंगा हो वह ठीक है, पर हर व्यक्ति के पास घर हो, क्या यह कोई चिंताजनक विषय है या कोई प्रायोजित प्रोपगेंडा?

डीपी से अधिक चिंता कोई जीडीपी की करे तो क्या यह देशभक्ति है या देश के खिलाफ द्रोह अथवा देशविरोधी विचारधारा?

कौन ऐसा नागरिक होगा जिसे अपने वतन से प्यार न होगा? 
और कौन ऐसा नागरिक होगा जिसे अपने वतन से प्रश्न, समस्या, सवाल न होगा?

मेरा निष्कर्ष यह कहता है कि जब भी जनमानस यहां विमर्श करने लगता है उसे भीड़ बना दिया जाता है और भीड़ का वज़न, बहस को कमजोर करते रहा?

हर कोई चाहता है कि कमजोरी दूर हो, व्यवस्था दुरुस्त हो, दूर तक देश का नाम गूंजे और हमें गर्व की अनुभूति हो। 

एक लाईन में किसी को मनमाफिक परिभाषित करना आसान होता है लेकिन हम सबका रोष, दोष, होश और जोश सब देश में है, देश के खिलाफ कभी नहीं। 
इस पोस्ट को कई लोग पीएम मोदी से जोड़ेंगे ,तो यहां यह भी ज़रूर लिखना उचित होगा कि शासक कोई भी हो उसका पहला अधिकार जनता का पालन पोषण हैं ओर जनता अपने राजा के कार्यों से असंतुष्ट होगी तो सवाल करने की उत्तराधिकारी भी रहेगी।

लेकिन आज कि यह पोस्ट पीएम के संदर्भ में नहीं है, केवल भारतीय नागरिक होने के चलते स्वयं पीएम पर भी लागू होने जैसी है,क्योंकि पीएम होने से पूर्व वे भी इस देश के नागरिक पहले हैं।

पोस्ट का सार यह कि बेवज़ह ही भीड़ में न रहें। 
मूक न होएं, बधिर न लगें, अंधे न दिखें, चतुर न बनें। 
देश को अंग्रेजो ने लुटा, आज अपने ही लूटेंगे तो यह वह बात होगी कि दुर्योधन के हित में सोचकर इंद्र प्रस्थ नरेश धृतराष्ट्र ने योग्य पांडवों के साथ अन्याय की कोई सीमा नहीं छोड़ी।
राज्य का अहित हुआ, कोरवो का विध्वंस हुआ!
परन्तु सत्य किसी युग में नहीं डगमगाया,न सत्यरका प्रचार हुआ, न सत्य को कोई रोक पाया।
यहीं सत्य की ताकत का, परम सत्य हैं।

युवाओं को जोड़िए, प्रत्येक व्यक्तित्व को उभरने दीजिए, उसे तोड़िए नहीं।
क्योंकि बात भारत के संदर्भ में होगी तो हम सब भारतीय होंगे।
यह मानसिकता आपको ही लानी होगी।
आंख मूंद कर कि गई गलतियों को सुधारना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन क्रांतिकारियों के लिए जिन्हें हम आज याद करेंगे।
यह दिन उन्हीं की देन है।
मगर आज तक हम आंतरिक उन्मादों से जंग लड़ रहे हैं यह विचारणीय हैं।
समस्या का हल निकालने के लिए हैं।

जान हैं तो जहान हैं।
जहान पर जां कुर्बान हैं।


जय हिंद
वंदे मातरम्

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow