एक ऐसी आज़ादी हो,एक ऐसा रक्षासूत्र बंधे..

एक ऐसी आज़ादी हो,एक ऐसा रक्षासूत्र बंधे..

एक ऐसी आज़ादी हो,एक ऐसा रक्षासूत्र बंधे..

आज़ादी का पर्व ओर रक्षा बन्धन दोनों निकट आ रहें हैं ऐसे में यह प्रेरणा स्पद जानकारी भारत की पवित्र रक्षा सूत्र की लाज का बखान करती हैं।
जिसे हर भारतीय को समझना होगा।

आज़ादी ...आज़ादी क्या बेड़ियों से आज़ादी या आज भी मौजूद हैं वैचारिक मतभेद की गुलामी ???
 इसे खत्म करने के लिए इतिहास में झाकना होगा , भारत की खूबसूरती को जानना होगा।
जब लोग आज धर्म मजहब के नाम पर एक दूसरे की आज़ादी छीन रहे हैं।
एक दूसरे के खून के प्यासे बने हो।
हां भारत का वर्तमान भूतकाल के मुद्दो पर रोजाना प्रताड़ित होता हैं तो क्यों न भूतकाल में जाकर ही खूबसूरत दवा ढूंढ कर वर्तमान नक़ाब पोश लोगों को दिखाई जाएं।
आखिर यह हकीकत ,यह परस्पर सद्भाव क्यों छुपाया जाता हैं जनता से???

मैं बात कर रही हूं साल 1857 की क्रांति की ।
जब इस क्रांति की लहर पूरे देश में फैल चुकी थी। 
झांसी पहली क्रांति का केंद्र बिंदु रहा था और इस क्रांति का नेतृत्व वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई कर रही थीं। अंग्रेजों के खिलाफ चल रहे इस संग्राम में एक पल ऐसा भी आया जब रानी लक्ष्मीबाई के साथ बहुत कम लोग खड़े थे।
अंग्रेजों की विशाल सेना के खिलाफ रानी अकेली पड़ती दिख रही थीं।
ऐसे समय में उन्होंने वो काम किया जो मिसाल बन गया। महारानी लक्ष्मीबाई ने उत्तर प्रदेश में बांदा (जिला) के नवाब अली बहादुर द्वितीय को राखी भेज कर मदद मांगी थी।
इस पत्र में रानी लक्ष्मीबाई ने यह भी कहा कि- "हमारी राय है कै विदेसियों का सासन भारत पर न ओ चाहिए। अंगरेजन से लड़वौ बहुत जरूरी है।"

तब सूती के उस धागे ने कमाल कर दिखाया था।
बांदा के नवाब 10 हजार सैनिकों के साथ अंग्रेजों से युद्ध करने झांसी पहुंच गए थे।

आलम यह था कि उधर, रानी लक्ष्मीबाई ने भी अंग्रेजों से मोर्चा खोल दिया। 
अंग्रेजी फौज ने झांसी के किले को चारों तरफ से घेर लिया। झांसी जाने वाले रास्ते बंद कर दिए। 
अंग्रेजी फौज मंदिरों की आड़ लेकर किले पर बमबारी कर रही थी। उधर, रानी लक्ष्मीबाई के तोपची गुलाम गौस अपनी तोप ‘कड़क बिजली’ से जवाबी ,जवाबी हमला करते हुए अंग्रेजों के छक्के छुड़ा रहा था।

वहीं नवाब ने लक्ष्मीबाई को झांसी में अंग्रेजों से घिरा देख अंग्रेजी फौज पर हमला कर दिया। तमाम अंग्रेज फौजी मारे गए।

झांसी की रानी ने बानपुर के राजा अरिमर्दन सिंह को भी मदद के लिए ऐसा ही पत्र भेजा था। अरिमर्दन सिंह ने भी नवाब की फौज में शामिल होकर मुंह बोली बहन लक्ष्मीबाई की मदद की थी। 
आज भी इसकी मिसाल देखने को मिलती है। 

आज भी रक्षाबंधन पर्व पर हर वर्ष बड़ी तादाद में हिंदू बहनें अपने मुंह बोले मुस्लिम भाइयों को राखी बांधती या भेजती हैं। मुंह बोले यह भाई उनकी रक्षा का संकल्प लेते हैं।

ये हैं भारत के असली स्वरूप की दास्ता...

जय श्री कृष्णा
जय हिंद

पूजा बाथरा
मोटिवेश्नल लेखिका राष्ट्रीय पत्रकार नई दिल्ली

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